जप माला में 108 दाने ही पिरोये जाते हैं और एक दाना सुमेरू रूप में गूँथा जाता है। कई बार लोगों में एक सहज जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि प्रत्येक जप माला में, चाहे वह रुद्राक्ष की माला हो या कोई अन्य माला 108 मोती ही क्यों लगाये जाते हैं? 108 माला का रहस्य क्या है? जप माला में 108 मोती क्यों होते हैं इसे लगाये जाने का क्या प्रयोजन है? साथ ही यह भी प्रश्न उठता है कि सुमेरू क्यों लगाया जाता है? इन सभी प्रश्नों का समाधान इस प्रकार है-
माला में सुमेरु क्यों लगाया जाता है (109th bead)
माला का 109 वा मनका सुमेरू कहलाता है। सुमेरु मतलब माला का वो दाना जो अंत में आता है जो 108 दानो में 109 होता है। जब हम जप के समय 108 दाने पर जाते है तो उसके बाद के दाने को सुमेरु कहते है जो 109 पर होता है ।
ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से आकाश गंगा में अश्विनी, भरणी, कृतिका आदि 27 नक्षत्रों की एक माला होती है। ये सत्ताइस नक्षत्र सुमेरू पर्वत के सहारे चारों दिशाओं में घूमते हैं। अतएव 27 नक्षत्रx 4 दिशायें = 108 मणिकाओं की एक नक्षत्र माला आकाश गंगा में बनती है तथा यह नक्षत्र माला सुमेरू पर्वत के सहारे घूमती है; किन्तु कभी भी सुमेरू का उल्लंघन नहीं करती।
इसी ज्योतिषीय आधार पर जप माला में 108 दानों का ही उपयोग किया जाता है और सुमेरू पर्वत के प्रतीक के रूप में एक दाना सुमेरू लगाया जाता है। इस प्रकार जप माला चाहे रुद्राक्ष की हो या चन्दन, तुलसी, स्फटिक आदि की किन्तु सभी मालाओं में 108 मनकों को ही पिरोया जाता है। इसी आधार पर 108 मणियों की माला जप काल में घुमायी जाती है और जिस प्रकार नक्षत्र सुमेरू पर्वत का उल्लंघन न करके उसके चारों ओर चारों दिशाओं में घूमते हैं, उसी प्रकार जप काल में भी माला के सुमेरू का उल्लंघन नहीं किया जाता है बल्कि उंगलियों के सहारे माला को पलट दिया जाता है।
यह भी हो सकता है की कोई व्यक्ति जप करने के दौरान मंत्र को गिनना भूले नहीं इसलिए भी सुमेरु तक जाना और फिर वंहा से फिर से मंत्र जपा जाता है। सुमेरु दाना नहीं होने पर माला राउंड में हो जाएगी जिससे 108 दानो में मंत्र जपने में भूल हो सकती है।
माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरूप होते हैं। माला का 109 वा मनका सुमेरू कहलाता है। एक बार माला जब पूर्ण हो जाती है तो अपने ईष्टदेव का स्मरण करते हुए सुमेरु को मस्तक से स्पर्श किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड में सुमेरु की स्थिति सर्वोच्च होती है।
108 माला का रहस्य
माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरूप होते हैं। किसी भी जप माला में 108 दानो का रहस्य गणित ,ज्योतिष ,सूर्य ,ब्रह्मण्ड और प्रकृति के अंदर छुपा हुआ है। माला में एक सौ आठ मोती पर ही क्यों मंत्र को जपा जाता है और यह किस प्रकार संसार के निर्माण से जुड़ा है तथा माला में उपस्थित 108 या सुमेरु के साथ 109 दाने किस आधार पर है इस पर निम्न प्रकार के 108 माला का रहस्य है-
ह्रदय चक्र
हम जिन 7 चक्र के बारे में जानते है वह चक्र ऊर्जा रेखाओं के चौराहे हैं। हृदय चक्र बनाने के लिए कुल 108 ऊर्जा रेखाएँ एकत्रित होती हैं। उनमें से एक सुषुम्ना, सहस्रार चक्र की ओर ले जाती है और माना जाता है कि यह आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्म-साक्षात्कार का मार्ग है। इन ऊर्जा रेखाओ को 108 माला का रहस्य के रूप में समझ सकते है ।
सूर्य और पृथ्वी का व्यास
सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का 109 गुना है। सूर्य का व्यास है लगभग 1,392,000 किलोमीटर और पृथ्वी का व्यास है लगभग 12,742 किलोमीटर। अगर हम सूर्य के व्यास में पृथ्वी के व्यास का भाग दे तो हमें लगभग 109 प्राप्त होगा जो 109 दाने की माला में सुमेरु सहित संख्या हो सकती है।
साँस लेने की संख्या के आधार पर
बिना कुश के अनुष्ठान और बिना माला के संख्याहीन जप निष्फल होता है। माला में 108 मोती क्यों होते हैं, उस विषय में योगचूड़ामणि उपनिषद में कहा गया है-
पद्शतानि दिवारात्रि सहस्त्राण्येकं विंशति।
एतत् संख्यान्तिंत मंत्र जीवो जपति सर्वदा।।
इसके अनुसार हमारी साँस लेने की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला बनाई गई है। 24 घंटों में एक सामान्य व्यक्ति 21,600 बार सांस लेता है। चूंकि 12 घंटे दिनचर्या में निकल जाते हैं, तो शेष 12 घंटे ईष्ट आराधना के लिए बचते हैं अर्थात 10,800 सांसों का उपयोग मनुष्य को अपने ईष्ट के स्मरण करने में व्यतीत करना चाहिए, लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता इसलिए इस संख्या में से अंतिम 2 शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही ईष्ट के स्मरण की मान्यता प्रदान की गई।
लेकिन यह आज के परिवेश के हिसाब से अलग हो सकता है क्योंकि आज व्यक्ति 15-16 घंटे अपना कार्य ही करता है। यह भी 108 माला का रहस्य है।
नक्षत्र के आधार पर माला की संख्या
भारतीय ऋषियों की ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। चूंकि प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं अत: इनके गुणफल की संख्या 108 आती है, जो परम पवित्र मानी जाती है। इसमें श्री लगाकर ‘श्री 108’ हिन्दू धर्म में धर्माचार्यों,महामंडलेश्वर , जगद्गुरुओं के नाम के आगे लगाना अति सम्मान प्रदान करने का सूचक माना जाता है। इसलिए 108 मोती की माला का ज्योतिष में विशेष लाभ है।
राशियों और ग्रहो के अनुसार
वैदिक ज्योतिष में ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों को राशि का नाम दिया गया जो मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 और राशियों की संख्या 12 का गुना किया जाये तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला में 108 मोतियों की संख्या संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए यह 108 माला का रहस्य है।
गंगा नदी और 108
माला में 108 मोती क्यों होते हैं इसका सम्बन्ध पवित्र गंगा नदी की लोकेशन से भी है। पवित्र नदी गंगा जी 12 डिग्री (79° से 91°) के देशांतर और नौ डिग्री (22° से 31°) के अक्षांश तक फैली हुई है। यदि आप फिर से 12 का गुना 9 में करे तो 108 प्राप्त होता है।
सूर्य की कलाएं
एक वर्ष में सूर्य 216000 (दो लाख सोलह हजार) कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। वह छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 (एक लाख आठ हज़ार) बार कलाएं बदलता है। 108 मोती की माला में सूर्य की कला को जोड़ा जा सकता है क्योंकि संपूर्ण ज्योतिष सूर्य पर आधरित है और ग्रहो का केंद्र भी है।
संस्कृत वर्णमाला के अनुसार
माला में 108 मोती क्यों होते हैं इसका उत्तर हमें संस्कृत वर्ण माला में भी मिलता है। संस्कृत वर्णमाला में 54 अक्षर होते हैं। प्रत्येक में अक्षर में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग स्थित है यानि यह शिव और शक्ति हैं। अगर हम 54 को शिव शक्ति यानि 2 में गुना करे तो हमें 108 प्राप्त होता है।
कुंडली में घर
एक वैदिक कुंडली में कुल 12 घर बने होते है इन्हे भाव भी कहा जाता है और 9 ग्रह इनका प्रतिनिधित्वा करते है। इसलिए जब इन 12 घर और 9 ग्रहो का गुना करते है तो 108 प्राप्त होता है।
1, 2, और 3 की घात:
अगर हम गणित में देखे तो
1 की घात 1 = 1
2 की घात 2 = 4
3 की घात 3 = 27
1x4x27 = 108
इसे हम ब्रह्मा विष्णु महेश समझ सकते है या त्रिलोक की शक्ति। वैसे यह एक संभावना है।
इस आर्टिकल के माध्यम से आपने जाना की माला में 108 मोती क्यों होते हैं , 108 माला का रहस्य और माला में सुमेरु क्यों लगाया जाता है यह कैसे संसार के निर्माण के गणितीय आंकड़ों से बनता है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके मन में क्या विचार आते है यह हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताये और हमें सोशल मीडिया पर फॉलो जरूर करे।
यह भी पढ़े:
Samudr manthan me sumer parvat nhi istemal hua tha
धन्यवाद आपने सही बताया। हमने गलती से सुमेरु पर्वत लिखा। मंदरांचल पर्वत का उपयोग हुआ था।