गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित(Shri Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi)

Share With Your Friends

Shri Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi, Ganesh chalisa in hindi, Ganesh chalisa meaning,गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित

आपने हमारी पोस्ट में शिव चालीसा और दुर्गा चालीसा को पढ़ा ही होगा। आज आप गणेश चालीसा के बारे में जानेंगे। गणेश चालीसा की चौपाई क्या है और उनका हिंदी में अर्थ क्या है। साथ जी जानेंगे गणेश चालीसा में गणेश जी के जन्म की एक अलग कहानी जो पुरानी कहानी से कुछ अलग है।

ganesh chalisa lyrics in hindi ,गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित

Shri Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi

श्री गणेश चालीसा हिंदी अर्थ

दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप विघ्नो को हरने वाले और मंगल कार्य करते हो, माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।

चौपाई

जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥1॥

हे गणो के राजा गणपति आपकी जय हो, आप सभी मंगल और कल्याणकारी कार्यो को शुभता में बदल देते हो।

जय गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥2॥

हे गणेश! आपका शरीर हाथी के समान हैं, आप हर घर में सुख व शांति प्रदान करते हो, आप संपूर्ण विश्व के विधाता हो, आप सभी को बुद्धि प्रदान करते हो।

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥3॥

आपकी नाक हाथी के सूंड के समान मुड़ी हुई हैं जो कि हमारे मन को बहुत सुहाती हैं। आपके माथे पर लगा तीन धारियों वाला तिलक(त्रिपुण्ड) हर किसी के मन को मोहित कर देता हैं।

राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥4॥

आपने चाँदी से जड़ित मणिया और मोती की माला धारण की है ,आपके सिर पर सोने का मुकुट हैं और आपकी आँखें भी बड़ी व विशाल हैं।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥5॥

आपके हाथों में पुस्तक, कुल्हाड़ी (फरसा) व त्रिशूल हैं तथा आपको मोदक व सुगन्धित फूलों का भोग लगाया जाता हैं।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥6॥

आपका शरीर पिले रंग के वस्त्रो से सजा है तथा आपके चरण भी इतने आकर्षक हैं कि ऋषि-मुनियों का मन भी इन्हें देखकर मोहित हो जाता हैं।

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।
गौरी ललन विश्व-विख्याता॥7॥

हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है।

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे।
मूषक वाहन सोहत द्घारे॥8॥

आपकी पत्नियाँ ऋद्धि व सिद्धि सदैव आपकी सेवा में तत्पर रहती हैं तथा आपके दरवाजे पर आपका वाहन मूषक रहता हैं।

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी।
अति शुचि पावन मंगलकारी॥9॥

हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ व मंगलकारी है।

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥10॥

एक समय गिरिराज कुमारी यानि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥11॥

जब उनकी तपस्या समाप्त हो गयी तब आप वहां ब्राह्मण का वेश बनाकर पहुंचे थे।

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥12॥

आपको अतिथि मानकार माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की।

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥13॥

माता पार्वती की सेवा से प्रसन्न होकर आपने उन्हें तपस्या के फलस्वरूप पुत्र होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण, यहि काला॥14॥

आपने कहा कि हे माता आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा।

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥15॥

जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा।

अस कहि अन्तर्धान रुप है।
पलना पर बालक स्वरुप है॥16॥

इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए।

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥17॥

माता पार्वती ने जैसे ही आपको उठाया, आपने एक शिशु की भांति रोना शुरू कर दिया। माता पार्वती ने आपके मुहं की ओर देखा जो कि सुख देने वाला था लेकिन आपका रूप उनके समान नही था।

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥18॥

आकाश से इस दृश्य को देखकर सभी देवतागण नृत्य और मंगलगान करने लगे तथा आकाश से फूलों की वर्षा शुरू हो गयी। 

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥19॥

भगवान शिव व माता पार्वती ने आपके जन्म के उपलक्ष्य में बहुत दान किया। आपको देखने देवता व ऋषि-मुनि आने लगे।

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥20॥

आपके दर्शन करके सभी देवताओं व मुनियों को बहुत ही आनंद आया तथा स्वयं शनि देव भी आपके दर्शन करने पहुंचे।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक, देखन चाहत नाहीं॥21॥

साथ ही शनि देव को अपने अवगुणों के कारण आपको देखने का मन नही कर रहा था ताकि उनकी गलत छाया आप पर ना पड़े।

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥22॥

शनिदेव को भगवान गणेश से मुहं फेरता देखकर माता पार्वती के मन में संदेह उत्पन्न हुआ और उन्होंने शनि देव से कहा कि हमारे यहाँ पुत्र प्राप्ति के उत्सव से क्या तुम प्रसन्न नही हो।

कहन लगे शनि, मन सकुचाई।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥23॥

यह सुनकर शनिदेव ने माता पार्वती से हिचकते हुए कहा कि मुझे शिशु को दिखाकर क्या करोगी क्योंकि इससे कुछ अनिष्ट हो जाएगा।

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कहाऊ॥24॥

इस पर माता पार्वती को विश्वास नही हुआ और उन्होंने शनि देव को शिशु देखने को कहा।

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा।
बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥25॥

माता पार्वती के कहने पर जैसे ही शनि देव ने भगवान गणेश के शिशु रूप पर दृष्टि डाली, उसी समय शिशु का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥26॥

अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई व बेहोश होकर गिर गई। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।

हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥27॥

इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटि चक्र सो गज शिर लाये॥28॥

यह दृश्य देखकर उसी समय भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर वहां पहुंचे और अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का सिर काटकर ले आये।

बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥29॥

भगवान विष्णु ने उस हाथी के सिर को उस शिशु के धड़ पर रखा और इसके बाद भगवान शिव ने मंत्रों इत्यादि को पढ़कर उसमे पुनः प्राण डाल दिए।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥30॥

इसके पश्चात भगवान शिव ने आपका नाम गणेश रखा और आशीर्वाद दिया कि संपूर्ण जगत में सर्वप्रथम आपकी पूजा की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने आपको बुद्धि व निधि पाने का वरदान दिया।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥31॥

जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि की परीक्षा लेनी चाही और आपको व भगवान कार्तिक को पृथ्वी की परिक्रमा कर आने को कहा।

चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥32॥

इतना सुनते ही भगवान कार्तिक तुरंत अपने वाहन पर पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े किंतु आपने बुद्धिमता से काम लिया।

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥33॥

आपकी बुद्धिमता को देखकर भगवान शिव का हृदय बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने आपकी प्रशंसा की तथा आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥34॥

आपने उसी समय अपने माता-पिता के चरण स्पर्श किये और उनके चारों ओर 7 बार परिक्रमा कर डाली।

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥35॥

हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता।

मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥36॥

हे भगवान श्रीगणेश!! मैं तो बुद्धिहीन हूँ, पापी हूँ, दुखी हूँ, मैं किसी युक्ति से आपकी प्राथना करूँ।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥37॥

हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं।

अब प्रभु दया दीन पर कीजै।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥38॥

हे प्रभु दीन दुखियों पर अब दया करो और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।

दोहा

श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करै कर ध्यान
नित नव मंगल गृह बसै। लहे जगत सन्मान॥
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

जो भी भक्तगण नियमित रूप से इस श्रीगणेश चालीसा का पाठन करता हैं, उसके घर में मंगल कार्य होते हैं तथा समाज में प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं।हजारों संबंधों की पालना करते हुए, ऋषि पंचमी के दिन, आपकी यह गणेश चालीसा समाप्त हुई।

Shri Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi End
गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित
समाप्त

गणेश चालीसा में गणेश जन्म की कहानी(Ganesh Birth Story in Chalisa)

इस पोस्ट में हमने गणेश चालीसा लिरिक्स (Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi) चोपाई को पढ़ा और इसके अर्थ को समझा। गणेश चालीसा में गणेश जी के जन्म की एक अलग कहानी देखने को मिलती है। जंहा हम बचपन में सुनते आये है की पार्वती जी ने स्नान के दौरान उबटन से गणेश जी का निर्माण किया था और सुरक्षा के लिए स्न्नान कक्ष के बाहर पहरे के लिए भेजा था जिसमे शिव गणेश को अपने पुत्र के रूप में नहीं पहचान पाते और गणेश जी के अहंकारवश शिव अपने त्रिशूल से उनके सिर को अलग कर देते है जिसमे बाद में एक बुद्धिमान हाथी जिसे शिव का वरदान प्राप्त था उसका सिर गणेश जी को लगा देते है।

ganesh chalisa in hindi
Ganesh Temple Manawar Madhya pradesh

लेकिन गणेश चालीसा में गणेश जी स्वयं ब्राह्मण के रूप में पार्वती जी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देते है और स्वयं ही पलने में पुत्र के रूप में प्रकट हो जाते है। उन्हें देखने के लिए कई देवता और ऋषिगण आते है जिसमे शनि देव भी होते है। शनि की दृष्टि की कारण गणेश जी का सिर अलग हो जाता है और फिर भगवान विष्णु नजदीक में हाथी के सिर को चक्र से अलग करके गणेश जी को लगाते है। इन दोनों पौराणिक कहानियो में कौन सी अधिक सही है यह जानना जरूरी है और यह एक शोध का विषय है।

आपको गणेश चालीसा(Ganesh Chalisa Lyrics) को पढ़ना कैसा लगा हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताये। आप हमें सोशल मीडिया पर भी अपनी राय दे सकते है।

यह भी जानिए :


Share With Your Friends

Leave a Comment