रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र|Shiv Tandav Stotram Lyrics In Hindi

Shiv Tandav Stotram Lyrics: हमने जब भी रामायण देखि है उसमे रावण के द्वारा शिव तांडव स्तोत्र को सुना है। रामायण चाहे रामानंद सागर जी को हो, देवो के देव महादेव या वर्तामन में श्रीमद रामायण या किसी फिल्म में शिव तांडव स्तोत्र का वर्णन आता है। रावण अपने साथ शिव पार्वती जी को लंका ले जाना चाहता था लेकिन जब महादेव लंका जाने से मन करते है तो रावण कैलाश पर्वत उठाने लगता है।

रावण कृत शिव तांडव स्तोत्रम्
रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र (Image Source Instagram)

जब रावण कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास करता है तो महादेव अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को निचे धकेलते है जिससे रावण के हाथ पर्वत के मध्य दब जाते है तभी रावण महादेव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र का गुणगान करता है। रावण के स्तोत्र से प्रसन्न होकर महादेव रावण को शिवलिंग प्रदान करते है।

रावण कृत शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram Lyrics In Sanskrit)

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥1॥

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥2॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥4॥

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥5॥

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥6॥

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥ 14 ॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अनुवाद (Shiv Tandav Stotram In Hindi)

जिन्होंने जटा रूपी अटवी (वनरूपी) से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर, डमरू के डमट् डमट् डमट् शब्दों से मण्डित प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें।

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शिव का तांडव

जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं, जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

पर्वतराज की पुत्री किशोरी पार्वती के विलासकालोपयोगी शिरोभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनन्दित हो रहा है, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, ऐसे किसी दिगम्बर तत्त्व में मेरा मन विनोद करे।

जिनके जटाजूटवर्ती उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे।

जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के मस्तकवर्ती कुसुमों की धूलि से धूसरित हो रही हैं; नागराज के हार से बँधी हुई जटावाले वे भगवान् चन्द्रशेखर जिनका मुकुट चंद्रमा है मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्तिके साधक हों ।

जिसने ललाट-वेदीपर प्रज्वलित हुई अग्निके स्फुलिंगों के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं, सुधाकर की कला से सुशोभित मुकुट वाला वह जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक हो 

जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर धक् धक् जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव को हवन कर दिया था, गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्र भंगरचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान् त्रिलोचन में मेरी धारणा लगी रहे 

जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित हैं, जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, वे संसारभार को धारण करनेवाले चन्द्रमा जिनकी गर्दन बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है ,मनोहर कान्तिवाले भगवान् गंगाधर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें 

जिनका जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव (संसार), दक्ष यज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराजका भी उच्छेदन करने वाले हैं उन्हें मैं भजता हूँ 

जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं ,शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है, धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गम्भीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान् शंकरकी जय हो 

पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, साँप और मुक्ता की मालामें, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तृण अथवा कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराज में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा 

सुन्दर ललाटवाले भगवान् चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो अपने कुविचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबायी हुई विह्वल आँखोंसे शिव मन्त्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊँगा ?

सिर में गुथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता परमानन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे।

प्रचण्ड बड़वानल के समान पापों को भस्म करने में प्रचंड अमंगलों का विनाश करने वाले अष्ट सिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें। 

इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो जाता है और परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।

प्रातः शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

शिव जी की कृपा के लिए आप शिव महिम्न स्तोत्र को भी पढ़िए।

Shiv Tandav Stotram FAQ:

शिव तांडव स्तोत्र कब पढ़ा जाए?

सावन महीने के समय ,महाशिवरात्रि ,सोमवार और प्रदोष व्रत के समय शिव तांडव स्तोत्र को पढ़ना चाहिए।

रोज शिव तांडव पढ़ने से क्या होता है?

शिव भक्त शिवत्व को प्राप्त करने लिए नित्य शिव स्तोत्र का पाठ करते है।

शिवतांडव स्तोत्रम में कितने श्लोक हैं?

रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्त्रोत में कुल 17 श्लोक हैं।


शिव तांडव किसकी रचना है?

शिव तांडव स्तोत्र रावण के द्वारा रचित स्तोत्र है जो महादेव को समर्पित है।


शिव तांडव स्तोत्र कहाँ से लिया गया है?

शिव तांडव स्तोत्र का वर्णन रामायण के अंतर्गत आता है इसके अलावा शिव महापुराण में भी उल्लेख है।

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