16 Somvar Vrat Katha in Hindi | सोलह सोमवार व्रत कथा विधि

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16 somvar vrat katha 2023:भगवान शंकर की कृपा पाने के लिए 16 सोमवार का व्रत करना शुभ माना जाता है। इस व्रत को ज्यादातर लड़कियां करती हैं लेकिन अगर लड़के भी अच्छा जीवनसाथी पाने या दूसरी मनोकामनाओं के लिए करें तो वो पूरी होती है। उदया तिथि के किसी भी सोमवार को सुबह नहाने के बाद भगवान शंकर की प्रतिमा के सामने संकल्प लें और अनुष्ठान करें कि आप 16 सोमवार व्रत का प्रारंभ कर रहे हैं। इसके बाद 16 सोमवार की व्रत कथा करे।

16 somwar vrat katha vidhi hindi ,सोलह सोमवार व्रत कथा

16 Somvar Vrat Katha (सोलह सोमवार व्रत कथा)

एक समय की बात है जब महादेव पार्वती जी के साथ भ्रमण कर रहे थे और भ्रमण करते हुए मृत्युलोक की अमरावती नगर में पहुंचते है। उस नगर में एक राजा था जिसने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था। महादेव और देवी पार्वती उस मंदिर में रहने लगे।

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एक दिन देवी पार्वती ने महादेव से कहा- “हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है।” पार्वती जी की इच्छा जानकर शिव पार्वती के साथ चौसर खेलने बैठ गए। जैसे ही खेल प्रारंभ हुआ वंहा उस मंदिर का पुजारी आ गया। तब पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा कि हे पुजारी जी! आप यह बताइए कि इस चौसर में किसकी जीत होगी? तो पुजारी ब्राह्मण ने कहा कि देवो के देव महादेव जी इस खेल में विजय प्राप्त करेंगे। परन्तु चौसर में शिवजी की पराजय हुई और माता पार्वती जी जीत गईं।

तब ब्राह्मण को पार्वती जी ने असत्य बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया। फिर महादेव और पार्वती जी उस मंदिर से कैलाश पर्वत लौट गए। पार्वती जी के श्राप के कारण पुजारी कोढ़ी हो गया। नगर के स्त्री-पुरुष उस पुजारी की परछाई से भी दूर-दूर रहने लगे। कुछ लोगों ने राजा से पुजारी के कोढ़ी हो जाने की शिकायत की तो राजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उसे मंदिर से निकलवा दिया। उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया गया। किन्तु कोढ़ी पुजारी मंदिर के बाहर बैठकर भिक्षा माँगने लगा।

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काफी समय बीत गया और फिर कुछ दिनों के पश्चात स्वर्गलोक की कुछ अप्सराएं उस मंदिर में पधारीं। अप्सराओ ने उस कोड़ी पुजारी को देखा और उसकी यह दशा देखकर कारण पूछा। तब पुजारी ने निःसंकोच उन्हें भगवान शिव और पार्वतीजी के चौसर खेलने और पार्वतीजी के श्राप देने की सारी कहानी सुनाई। इस स्थिति से उभरने के लिए तब अप्सराओं ने पुजारी से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत (16 Somvar Vrat) रखने को कहा।

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16 Somvar Vrat Vidhi (सोलह सोमवार व्रत विधि)

तब पुजारी ने सोलह सोमवार की विधि को पूछा। पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर अप्सराओं ने कहा-

सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, आधा सेर गेहूँ का आटा लेकर उसके तीन अंग बनाना।

फिर घी का दीपक जलाकर गुड़, नैवेद्य, बिलपत्र , चंदन, अक्षत, फूल तथा जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना।

पूजा के बाद तीन अंगों में एक अंग भगवान शिव को अर्पण करके, एक आप ग्रहण करें। शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहां उपस्थित स्त्री, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना।

इस तरह व्रत करते हुए जब सोलह सोमवार बीत जाएँ तो सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना। फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुष और बच्चों को प्रसाद बाँट देना।

इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव तुम्हारे कोड़ी शरीर को ठीक करके तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे। अप्सराओ ने यह बात पुजारी को बताई और इतना कहकर स्वर्गलोक को चली गईं।

तब पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। फलस्वरूप भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका कोढ़ नष्ट हो गया और वह स्वस्थ हो गया। राजा ने यह जानकर उसे फिर मंदिर का पुजारी बना दिया। वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता हुआ आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा।

महादेव और पार्वती पुन: पृथ्वी का भ्रमण

कुछ दिनों बाद पुन: पृथ्वी का भ्रमण करते हुए देवो के देव महादेव और पार्वती उस मंदिर में पधारते है । पुजारी को स्वस्थ अवस्था में देख देवी पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा तब पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई।

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पार्वती जी भी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने पुजारी से सोलह सोमवार व्रत की विधि(16 Somvar Vrat Katha vidhi) पूछकर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया।

पार्वती जी उन दिनों अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर चले जाने से बहुत चिन्तित रहती थीं। वे कार्तिकेय को वापस आने के लिए अनेक उपाय कर चुकी थीं, लेकिन कार्तिकेय लौटकर उनके पास नहीं आ रहे थे। तब सोलह सोमवार का व्रत करते हुए पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय के लौटने की मनोकामना की।

व्रत समापन के तीसरे दिन सचमुच कार्तिकेय वापस लौट आए। कार्तिकेय ने अपने हृदय-परिवर्तन के संबंध में पार्वतीजी से पूछा- ‘हे माता! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया था, जिससे मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया?’ तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा को सुनाया।

कार्तिकेय का सोलह सोमवार का व्रत

कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे। अपने मित्र को वापस लौट आने के लिए कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत (16 Somvar Vrat Katha) करते हुए ब्रह्मदत्त के वापस लौट आने की कामना प्रकट की। तब व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया।

ब्राह्मण मित्र ने कार्तिकेय से कहा- “प्रिय मित्र! तुमने ऐसा कौन-सा उपाय किया था जिससे परदेस में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया?” कार्तिकेय ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि सुनाई। ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ और तब उसने भी व्रत किया।

ब्रह्मदत्त का सोलह सोमवार का व्रत

सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद ब्रह्मदत्त विदेश यात्रा पर निकला। वहां नगर के राजा राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था। वहां के राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी यह माला जिसके गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेगा।

एक हथिनी, elephant in swayamwar 16 somwar kath

ब्राह्मण ब्रह्मदत्त भी उत्सुकता वश महल में चला गया। वहां स्वयंवर में कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे। तभी एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहां आई। हथिनी ने ब्राह्मण ब्रह्मदत्त के गले में जयमाला डाल दी। फलस्वरूप राजकुमारी का विवाह ब्राह्मण से हो गया।

राजकुमारी का सोलह सोमवार का व्रत

एक दिन ब्राह्मण ब्रह्मदत्त की पत्नी ने पूछा- “हे प्राणनाथ! आपने ऐसा कौन-सा शुभकार्य किया था जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी।” तब ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत की विधि (16 Somvar Vrat Vidhi) अपनी पत्नी को बताई। तब अपने पति से सोलह सोमवार का महत्व जानकर राजकुमारी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया। तब निश्चित समय पर भगवान शिव की अनुकम्पा से राजकुमारी के घर एक सुंदर, सुशील व स्वस्थ पुत्र पैदा हुआ। और उस पुत्र का नामकरण गोपाल के रूप में हुआ।

बड़ा होने पर पुत्र गोपाल ने भी मां से एक दिन प्रश्न किया कि मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया इसका क्या कारण है? तब माता गुंजन ने पुत्र को सोलह सोमवार व्रत (Solah Somvar Vrat Katha) की जानकारी दी। तब व्रत का महत्व जानकर गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प किया।

गोपाल का राजा बनना

जब गोपाल सोलह वर्ष का हुआ तो उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार(16 Somvar Vrat Katha) का विधिवत व्रत किया। व्रत समापन के बाद गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया। वहां के वृद्ध राजा ने गोपाल को पसंद किया और बहुत धूमधाम से अपनी पुत्री राजकुमारी मंगला का विवाह गोपाल के साथ कर दिया। इस प्रकार सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुँचकर आनंद से रहने लगा।

दो वर्ष बाद वृद्ध राजा का निधन हो गया, तो गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से गोपाल की राज्य पाने की इच्छा पूर्ण हो गई। राजा बनने के बाद भी वह विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा।

राजकुमारी मंगला का मंदिर में न जाना

व्रत के समापन पर सत्रहवें सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से कहा कि व्रत की सारी सामग्री लेकर वह समीप के शिव मंदिर में पहुंचे। पति की आज्ञा का उलघंन करके राजकुमारी मंगला ने सेवकों द्वारा पूजा की सामग्री मंदिर में भिजवा दी और स्वयं मंदिर नहीं गई।

जब राजा गोपाल ने भगवान शिव की पूजा पूरी की तो आकाशवाणी हुई- “हे राजन्! तेरी रानी ने सोलह सोमवार व्रत (16 Somvar Vrat Katha) का अनादर किया है , सो रानी को महल से निकाल दे, नहीं तो तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा।”

आकाशवाणी सुनकर राजा गोपाल ने तुरंत महल में पहुंचकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी को दूर किसी नगर में छोड़ आओ। सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए उसे तत्काल घर से निकाल दिया।

बुढ़िया और सूत

रानी मंगला भूखी-प्यासी उस नगर में भटकने लगी। तब रानी को उस नगर में एक बुढ़िया मिली। वह बुढ़िया सूत कातकर बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन उस बुढ़िया से सूत उठाया नहीं जा रहा था। बुढ़िया ने रानी से कहा- “बेटी! यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुंचा दो और सूत बेचने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें धन दूंगी।”

रानी मंगला ने उस बुढ़िया की बात मान ली। लेकिन जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आंधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आंधी में उड़ गया। बुढ़िया ने उस रानी को फटकारकर भगा दिया। तब फिर रानी चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुंची। उस तेली ने तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे। तब फिर तेली ने भी उस रानी को भगा दिया।

भूखी प्यास से व्याकुल रानी मंगला वहां से आगे की ओर चल पड़ी। रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया। फिर अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी। चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुँचती है। उस जंगल में एक तालाब था जिसमे निर्मल जल समाहित था। निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई। फिर रानी ने जल पीने के लिए लगी तालाब की सीढ़ियां उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, तभी उस जल में असंख्य कीड़े उत्पन्न हो गए। रानी ने दु:खी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत की।

फिर रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर आराम करना चाहा तो उस पेड़ के पत्ते पलभर में सूखकर बिखर गए। फिर रानी मंगला दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी। वह रानी जिस पेड़ के नीचे बैठती वही सुख जाता।

रानी का मंदिर पहुंचना

वन और सरोवर की यह दशा देखकर वहां के ग्वाले बहुत हैरान हुए। तब ग्वाले रानी को समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास ले गए। रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी अवश्य किसी बड़े घर की है और भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है।

पुजारी ने रानी से कहा- पुत्री! तुम कोई चिंता मत करो। मेरे साथ इस मंदिर में रहो कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा। पुजारी की बातों से रानी को बहुत सांत्वना मिली। फिर रानी उस मंदिर में रहने लगी, रानी भोजन बनाती तो सब्जी जल जाती, कभी आटे में कीड़े पड़ जाते,तो कभी जल से बदबू आने लगती।

पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले- “हे पुत्री! अवश्य ही तुझसे कोई अनुचित काम हुआ है जिसके कारण देवता तुझसे नाराज हैं और उनकी नाराजगी के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है।” तब पुजारी की बात सुनकर रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में न जाकर, शिव की पूजा नहीं करने की सारी कथा सुनाई।

पुजारी ने कहा- “अब तुम कोई चिंता मत करो। कल सोमवार है और कल से तुम सोलह सोमवार के व्रत (Solah Somvar Vrat Katha) करना शुरू कर दो। देवो के देव महादेव शिव अवश्य तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे।”

रानी मंगला का सोमवार का व्रत

पुजारी की बात मानकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए। रानी मंगला ने सोमवार का व्रत (16 Somvar Vrat Katha) करके शिव जी की विधिवत पूजा-अर्चना की तथा व्रतकथा सुनने लगी। जब रानी ने सत्रहवें सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया तो उधर उसके पति राजा के मन में रानी की याद आई। तब राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को रानी को ढूँढकर लाने के लिए भेजा। रानी को ढूँढते हुए सैनिक मंदिर में पहुँचे और रानी से लौटकर चलने के लिए कहा। तब पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया और सैनिक निराश होकर लौट गए। सैनिको ने लौटकर राजा को सारी बात बताईं।

राजा गोपाल का मंदिर पहुंचना

राजा गोपाल स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुँचे और रानी को महल से निकाल देने के कारण पुजारी जी से क्षमा माँगी। पुजारी ने राजा से कहा- “यह सब भगवान शिव के प्रकोप के कारण हुआ है।” इतना कहकर रानी को विदा किया।

फिर राजा के साथ रानी महल में पहुँचती है। महल में बहुत खुशियाँ मनाई गईं। पूरे नगर को सजाया गया। राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया। नगर में निर्धनों को वस्त्र बाँटे गए।

फिर रानी मंगला सोलह सोमवार का व्रत (Solah Somvar Vrat Katha) करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहने लगी। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसके जीवन में सुख ही सुख भर गए।

सोलह सोमवार के व्रत (16 Somvar Vrat Katha) करने से और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में किसी तरह की कमी नहीं होती है तथा स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

16 somvar vrat katha Video (सोलह सोमवार व्रत कथा वीडियो)

16 सोमवार व्रत कथा वीडियो

FAQ:

सोलह सोमवार व्रत(16 Somvar vrat benefits) के फायदे क्या है ?

सोलह सोमवार का व्रत परिवार की खुशहाली ,मनपसंद जीवनसाथी पाने और मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।

सोलह सोमवार(16 Somvar vrat samagri) व्रत सामग्री

आधा सेर गेहूँ का आटा,घी,गुड़, नैवेद्य, बिलपत्र , चंदन, अक्षत, फूल तथा जनेऊ का जोड़ा तथा सामान्य पूजन सामग्री।

सोलह सोमवार व्रत कब से शुरू करें

16 somvar vrat प्रदोष काल में

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