Sita Stuti:मिथिला नरेश राजा जनक और माता सुनयना जी की पुत्री और अयोध्या नरेश राजा श्री रामचंद्र जी की धर्मपत्नी,माता सीता का प्राकट्य अर्थात उनका जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। तभी से इस दिन को प्रत्येक वर्ष भारतीय संस्कृति में सीता नवमी , सीता जयंती या जानकी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस के बालकांड में माता सीता का सुंदर वर्णन किया है। तुलसीदास जी ने, सीता जी की वंदना करते हुए उन्हें, समस्त जगत का कल्याण करने वाली, सभी प्रकार के क्लेश को हरने वाली, पालनकर्ता आदि राम वल्लभा कहकर सुशोभित किया है।
श्री सीता स्तुति Sita Stuti
भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जन हितकारी भयहारी ।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी ॥
सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी ।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै निज -निज कारज करधारी ॥
सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई ।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई ॥
देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़ें सुख बाढ़े उर अधिकाई ।
अस्तुति मुनि करहीं आनन्द भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई ॥
ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी ।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुन खानी ॥
सिय सन मुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी ।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी ॥
सुनि मुनिबर बानी सिय मुसकानी लीला ठानी सुखदाई ।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई ॥
दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउँ मनलाई ।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई ॥
दोहा:
निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भईं सिय आय ।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय ॥